प्राचीन काल में प्रियंवद नाम के एक महाप्रतापी और धार्मिक राजा हुए। उनकी रानी मालिनी भी भगवान में आस्था रखने वाली धर्म परायण स्त्री थी। जब दोनों को वर्षो तक कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन में पुत्रेष्ठि यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के उपरांत उसके प्रसाद का सेवन करने से कुछ समय पश्चात रानी मालिनी गर्भवती हुई। राजा प्रियंवद और रानी मालिनी के हर्ष की सीमा नहीं थी। परन्तु विधि का विधान कुछ और ही था। रानी को पुत्र तो हुआ परन्तु मृत। राजा रानी दोनों दुःख के सागर में दुब गए। राजा का मन राजपाठ से हटने लगा।
अपने पुत्र को लेकर जो स्वपन उन्होंने देखे थे अब वो उन्हें डराने लगे थे।
जब उनका दुःख उनसे और सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अपने प्राण त्यागने का निर्णय किया। जब राजा अपने प्राण त्यागने ही वाले थे। की तभी उनके सामने एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने राजा से कहा हे राजन ! में ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना हू। सृष्टि की मूल प्रवति के छठे अंश से जन्म लेने के कारण मुझे षष्ठी कहते है। छठ माता ने राजा से कहा तुम अपनी रानी के साथ मिलकर मेरी विधिवत पूजा करो और दुसरो को भी प्रेरित करो। इस प्रकार मेरी आराधना करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। राजा ने आत्महत्या का विचार त्यागकर रानी मालिनी के साथ छठ का पूजन किया और अपने राज्य सभी नागरिको को भी यह व्रत रखने को कहा। इस प्रकार छठ माता की पूजा करने से राजा रानी की मनोकामना पूर्ण हुई और उन्हें एक सूंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिस प्रकार देवी षष्ठी ने राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को संतान का वरदान दिया उसी प्रकार छठ माता आप सभी की मनोकामनाए पूरी करें।
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