हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हें पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था। बालपन में एक बार सूर्य को पका हुआ फ़ल समझकर
उसे वो उसे खाने के लिये उड़ कर जाने लगे, उसी समय इन्द्र ने उन्हें रोकने के प्रयास में वज्र से प्रहार कर दिया, वज्र के प्रहार के कारण बालक हनुमान कि इुड़ी टूट गई और वे मूर्छित होके धरती पर गिर गये। इस घटना से कुपित होकर पवन देव ने संसार भर मे वायु के प्रभाव को रोक दिया जिसके कारण सभी प्राणियों में हाहाकार मच गया। वायु देव को शान्त करने के लिये अंततः इन्द्र ने अपने द्वारा किये गये वज्ज के प्रभाव को वापस ले लिया। साथ ही साथ अन्य देवताओं ने बालक हनुमान को कई वरदान भी दिये। यद्यपि वज्ज के प्रभाव ने हनुमान की ठड़डी पे कभी ना मिटने वाला चिन्ह छोड़ दिया। तदुपरान्त जब हनुमान को सुर्य के महाग्यानि होने का पता चला तो उन्होंने अपने शरीर को बड़ा करके सुर्य की कक्षा में रख दिया और सूर्य से विनती की कि वो उन्हें अपना शिष्य स्वीकार करें। मगर सुर्य ने उनका अनुरोध ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि चुंकि वो अपने कर्म स्वरूप सदैव अपने रथ पे भ्रमण करते रहते हैं, अतः हनुमान प्रभावपूर्ण तरीके से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाएँगे। सुर्य देव की बातों से विचलित
हुए बिना हनुमान ने अपने शरीर को और बड़ा करके अपने एक पैर को पूर्वी छोर पे और दूसरे पैर को पश्चिमी छोर पे रखकर पुनः सुर्य देव से विनती की और अंततः हनुमान के सतात्य(दृढ़ता) से प्रसन्न होकर सु्य ने उन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।

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तदोपरान्त हनुमान ने सुर्य देव के साथ निरंतर भ्रमण करके अपनी शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा पूर्ण होने के ऊपरांत हनुमान ने सुर्य देव से गुरु-दक्षेणा लेने के लिये आग्रह किया परन्तु सुर्य देव ने ये कहकर मना
कर दिया कि ‘तुम जैसे समर्पित शिष्य को शिक्षा प्रदान करने में मैने जिस आनंद की अनुभूती की है वो किसी
गुरु-दक्षिणा से कम नहीं है’। परन्तु हनुमान के पुनः आग्रह करने पर सुर्य देव ने गुरु-दक्षिणा स्वरूप हनुमान को सुग्रीव(धर्मपुत्र-सु्य)की सहायता करने की आज्ञा दे दी। हनुमान के इच्छानुसार सुर्य देव का हनुमान को शिक्षा
देना सुर्य देव के अनन्त, अनादि, नित्य, अविनाशी और कर्म-साक्षी होने का वर्णन करता है। हनुमान जेी बालपन में बहुत नटरखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को सता देते थे। बहुधा वो उनकीपूजा सामग्री और आदि कई वस्तुओं को छीन-झपट लेते थे। उनके इस नटखट स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी श्क्तियों को भूल जाने का एक लघु शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमानअपनी सब शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे
और पुनः किसी अन्य के स्मरण कराने पर ही उन्हें अपनी असीमित शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसामाना जाता है कि अगर हनुमान शाप रहित होते तो रामायण में राम-रावण युद्ध का स्वसरूप पृथक(1भिन्न,न्यारा) ही होता कदाचित वो स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को समाप्त कर देते।

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