सूर्य आज भी एक रहस्य है .यह हमारे सूक्ष्म शरीर को अपनी चैतन्य शक्ति से जीवंतता प्रदान करता है . प्राचीनकाल में ही हमारे ऋषि मुनियो ने  रहस्य को समझ लिया था और इसके उपयोग की कला को आमजन के कल्याण के लिए प्रतिपादित किया था .

सूर्य देव को आधर्य अर्पित  प्रचलन आदिकाल से चला आ रहा है क्योंकि यह जीवनदायनी ऊर्जा का स्त्रोत है इसलिए सूर्य नमश्कार किया जाता है . प्राचीनकाल से ही सूर्य नमस्कार की गणना योगासन तथा व्यायाम दोनों में की गई है .

आइये वेदो में सूर्य नमस्कार की उत्पत्ति के दावों को खोजते है. वेद सहिंता (12 वी से 10 वी ईस्वीं पूर्व )विभिन्न स्तुति मंत्र और अवतरणों  का संकलन है. इसके विभिन्न भागो में सूर्य की प्रशंसा है . सूर्य को अग्नि स्त्रोत या अग्नि अनुष्ठान के चमत्कारिक माद्यम से स्वास्थ्य व समृद्धि का प्रतीक माना है. कालांतर में वैदिक कर्मकाण्ड तेजी से समावेशित होते गए. विभिन्न प्रकार के पारम्परिक अभिवादन  आराधना में रचे  गये है .इन अन्तः अग्नि से प्रेरित सूर्य आराधना को आधुनिक सूर्य अभिवादन  उत्पत्ति  के रूप में देखा जा सकता है.

ऋग्वेद 

 ऋग्वेद में सूर्य के प्रकाश के संयोग को रोग निवारक कहा गया है . सूर्य को देव  मित्र  और प्राणिमात्र का शुभचिंतक बताया गया है .

यजुर्वेद  

यजुर्वेद में उल्लेख है की शसूर्यो वै आत्मा जगतस्थुः चश्च अर्थात  सारे संसार की आत्मा है . सूर्य की प्रत्यक्ष आरोग्यदाता देव है. दीर्घायु एवं स्वास्थ्य के लिए सूर्य की  पूजा  की जाती है .

सामवेद

 सामवेद में भी सूर्य रश्मियों को हर्ष और आनंद देने वाली    एवं उपासको को अपनी और द्रवित करने वाला बताया गया है .

अथर्ववेद

अथर्ववेद में उल्लेख है की प्रातः काल की आदित्य किरणों से अनेक व्याधियों का नाश होता है .

सूर्योपनिषद

सूर्योपनिषद  में बताया गया है की जो सूर्य को ब्रह्मा मानकर उपासना करता है. वह दीर्घजीवी बुद्धिमान और शक्तिशाली होता है सूर्य समय चक्र को गति प्रदान करता है.

अक्षयोपनिषद

 अक्षयोपनिषद में  भी अनगिनत किरणों वाले सूर्य का रूप धारण करने वाले ईश्वर के रूप में चित्रित किया गया है.

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अगस्त मुनि ने श्री राम को रावण से युद्ध करने से पूर्व आदित्य हृदयम का पाठ पढ़ाया था जो भी सूर्य नमस्कार का ही एक रूप है .इसी प्रकार रामायण सीरियल में भी भगवान राम और लक्ष्मण को गुरु वशिष्ठ द्वारा आश्रम में सूर्य नमस्कार के 12 आसनों का अभ्यास कराते हुए

दिखाया गया है. भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र सांब का कुष्ठ रोग सूर्य उपासना से दूर हुआ था. इसलिए सांब  ने सांब  पुराण की रचना की जिसमें सूर्य की महिमा एवं उपासना का वर्णन है.

 भारतवर्ष में अनेक सूर्य मंदिर हुए हैं कुछ का निर्माण तो आठवीं सदी में ही हो गया था .जो प्राचीन काल में सूर्य उपासना का प्रमाण है. ज्योतिष में भी सूर्य सिद्धांत एक प्राचीन विधि है जो समय की गणना ग्रहों की गति एवं ग्रहण से संबंध है.

मिस्र के पिरामिड भी सूर्य के प्रतीक है तथा सभ्यताओं में भी शोर देवों की उपासना के मंदिर विद्यमान थे.

भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत सूर्य में स्थित जीनालयों को नमस्कार किया करते थे .दक्षिण भारत के आचार्यों ने इसे आत्मसात किया तथा जीवंत रखा जब वह तीर्थ स्थानों पर जाते थे तो नित्य कर्म में सूर्य नमस्कार करते थे .जनता ने उन्हें देखा और अनुसरण किया जिससे इसका प्रचार हुआ .

शिवाजी महाराज को उनके गुरु समर्थ रामदास ने सूर्य नमस्कार की विधि बताइ. समर्थ रामदास जी स्वयं 1000 सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करते थे .सूर्य नमस्कार के अभ्यास से शिवाजी का शरीर एवं चरित्र इतिहास में अद्वितीय हो गया. शिवाजी ने अपने सैनिकों को भी यह अभ्यास कराया जिससे उनकी क्षमताओं में जबरदस्त वृद्धि हुई. दंडवत प्रक्रिया में भी भक्त समर्पण एकाग्रता तथा भक्ति भाव से प्रार्थना मुद्रा बनाता है फिर झुकता है फिर दंडवत लेता है फिर खड़ा होता है इससे भी आंशिक रूप में सूर्य नमस्कार के समरूप अवस्था बनती है.

सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ है सूर्य को नमन जीवनदायिनी ऊर्जा महा पुंज को नमस्कार सूर्य नमस्कार सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करने की एक प्राचीन विधि है. सूर्य नमस्कार में आसन प्राणायाम ध्यान चक्र जागरण और मंत्रोचार की क्रियाएं सम्मिलित होने से यह अपने आप में एक पूर्ण साधना है. वैसे तो सूर्य नमस्कार का प्रादुर्भाव एक रहस्य है फिर भी इसे वैदिक काल के मनीषियों आत्म ज्ञानियों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा के लिए विकसित की गई. एक पद्धति माना जाता है वर्तमान में इसके चमत्कारिक आसन अत्यधिक लोकप्रिय हो रहे हैं .सूर्य नमस्कार में आसन प्राणायाम ध्यान चक्र जागरण और मंत्रोच्चारण की क्रियाएं सम्मिलित होने से यह अपने आप में एक पूर्ण साधना है तो दोस्तों यह था सूर्य नमस्कार का  इतिहास

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